Monday, August 02, 2010

दुपहिये में बैठ सीधे घर चले आओ…

दुपहिये में बैठ सीधे घर चले आओ,आज तो प्रिये कोई बहाना ना बनाओ;

घिर आये हैं बादल, गिरने लगी हैं बुँदे,फिर दिखे हैं सपने, फिर जागी है उम्मीदें;

मरने दो उम्मीदों को, मुझे सपनों से जगाओ, घिर आये है बादल प्रिये, अब घर चले आओ.

खरीद लाई मैं बेसन, कट गए हैं प्याज, टप-टप कर रिझा रही मुझे बुँदों कि आवाज; मुझे जल्दी बताओ कितुम भीगने लगेहो, बिना बहाना बनाए अबघर को चले हो

फिर मैं भी नाचूंगी उन्ही बूंदों में आज; टपटप कर बुलारही मुझे बुँदों किआवाज. अबतो दुपहिये में बैठ सीधे घर चलेआओ, आजतो प्रिये कोई बहाना बनाओ

फिरआएगा सावन पुरे एकबरस के बाद, यदाकदा ही होती अब बिन सावन बरसात; इस अवसर को मुझसे तुम छीन लेनाआज, टपटप करके चिड़ा रही मुझे बुँदों कि आवाज

अब तो दुपहिये में बैठ सीधे घर चले आओ, आज तो... आज तो प्रिये कोई बहाना ना बनाओ.

श्रंगार रस - बड़े समय के बाद:)

दुपहिये में बैठ सीधे घर चले आओ, आज तो प्रिये जहाज ना उडाओ!

By Navin Pangti

Follow him on Twitter at http://twitter.com/pangti

Posted via email from abhishekrai's posterous

2 comments:

Ashutosh Tiwari said...
This comment has been removed by the author.
Ashutosh Tiwari said...

Thanks, It is really nice poam, I like this. For more info please visit us..Tourism In Bihar. My uncle is a poet. Nagesh Tripathi Shandilya